गाथा लोरिक चंदा के | आरु ओजस्वी साहू
बांस गीत छत्तीसगढ़ की ग्रामीण परंपरा में विशेष स्थान रखते हैं। यह गीत मुख्यतः बांसुरी की धुन पर गाए जाते हैं और इनमें प्रकृति, प्रेम, और सामाजिक जीवन का वर्णन होता है। ये गीत किसी खास अवसर जैसे फसल कटाई, विवाह, या पर्व त्योहारों पर गाए जाते हैं। बांस गीतों में लोकजीवन की सादगी, मेहनत, और उनके उत्सवों की झलक मिलती है।
लोरिक-चंदा की कहानी
लोरिक-चंदा की कहानी छत्तीसगढ़ के लोकसाहित्य की एक प्रसिद्ध गाथा है। यह कहानी प्रेम, वीरता और संघर्ष पर आधारित है। लोरिक एक साहसी और बलशाली योद्धा था, जबकि चंदा उसकी प्रेमिका थी। दोनों का प्रेम सामाजिक और पारिवारिक बंधनों से जूझता है।
कहानी में लोरिक और चंदा के प्रेम के साथ-साथ उनके द्वारा समाज और अन्याय के खिलाफ किए गए संघर्ष को भी चित्रित किया गया है। इसे गायन और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है, जो दर्शकों को भावुक और प्रेरित करता है।
छत्तीसगढ़ के लोकगीत और कथाएँ वहाँ की संस्कृति और जनजीवन को जीवंत रूप में प्रस्तुत करती हैं। ये परंपराएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी संजोई और साझा की जाती हैं।
चंदैनी….लोक गाथा लिरिक्स
गाथंव चंदैनी,लोरी-चंदा के ओ
गढ़ रीवाँ के रहैय्या…हो हो
आरिंग तीर म बसइया.. ये दिन तोर
बंसरी के ग बजइया..
खुमरी ल लटकइया..
चंदा के चेहरा,चकोरी बानी ग
लोरिक हिरदे समाये.. हो..
चंदा मया म बोथाये…
आँखी काजर अंजाये..
लाली मुंहूं म रचाये..
ये दे राजा महर के,बेटी ये ओ
चंदा हावय मन मोहनी…
ओ तो बरय जस जोगनी..
गाथंव चंदैनी,लोरी चंदा के ओ
लोरिक मया ल निभाये…
चंदा बंधना बंधाये…
दुनो जिनगी बिताए…
जग सुरता लमाये…
गीतकार- धनराज साहू, खोपली बागबाहरा
स्वर- आरु ओजस्वी साहू