छत्तीसगढ़ी की लोकगायिका रेखा देवार जी से मुलाकात
छत्तीसगढ़ी की लोकगायिका रेखा देवार जी से मुलाकात
देवार लोक गायन और नृत्य शैली का अद्भुत प्रदर्शन प्रसिद्ध लोकगायिका श्रीमती रेखा देवार एवं साथियो के द्वारा | रेखा देवार जी छत्तीसगढ़ की एक लोक कलाकार हैं। छत्तीसगढ़ में एक लोकप्रिय लोककथा दसमत कैना प्रदर्शन करने के लिए उन्हें इस क्षेत्र में मान्यता प्राप्त है। उन्होंने आठ साल की उम्र में प्रदर्शन करना शुरू किया। श्रीमती रेखा देवार का जीवन परिचय – : छत्तीसगढ़ में अनेक जनजातिय समुदाय अपनी कला और संस्कृति के लिये विख्यात है। छत्तीसगढ़ के मंचीय कला के नये दौर की शुरूआत की बात करे तो उसमें प्रमुख रूप से देवार समुदाय का नाम आता है। देवार समुदाय के महिला कलाकारों ने ही सबसे पहले मंच पर नृत्य और अभिनय की शुरूआत की नाचा और लोककला मंच के माध्यम से। आज हम वर्तमान में लोकमंच का जो व्यापक स्वरूप देख रहे है वह देवार कलाकारों की ही देन है। ये देवार कलाकार छत्तीसगढ़ से निकलकर देश-विदेश में अपनी कला का लोहा मनवाया है। जिसमें एक बड़ा नाम श्रीमती रेखा देवार का भी है जो कि आज छत्तीसगढ़ में देवार परंपरा की एकमात्र लोक गायिका है जो अपनी कला संस्कृति के साथ लोकगाथाओं की प्रस्तुति विशुद्ध रूप से देती है। रेखा देवार वर्तमान में ग्राम कुकसदा तहसील पथरिया व जिला मुंगेली में रहती है। रेखा देवार का जन्म मंडला (अविभाजित छत्तीसगढ़) के पास डेरा में हुआ था। रेखा के माता पिता अत्यंत गरीब थे पुरा समुदाय जीवकोपार्जन के लिये अपने प्रकार के काम के साथ नाच गाना व गोदना गोदने का काम करते थे। रेखा देवार अपने नाना और दादी से प्रेरणा लेकर महज सात-आठ वर्ष की आयु से मांदर की था पर कला का जौहर दिखा रही है। मां बाप की बहुत इच्छा थी की बेटी को पढ़ाई करायेंगे लेकिन इसमें गरीबी आड़े आया और जीवकोपार्जन के लिये नाच गाना करने लगी। धीरे-धीरे संघर्ष और गरीबी का दिन फिरा अन्य बड़े कलाकारों से संपर्क हुआ लोक कलामंच से जुड़ी और अपनी कला के बदौलत रेखा ने अपने साथ-साथ परिवार और समुदाय को नई दिशा दी।
लाली बंगला में न करियर बंगला में न
जब रेखा देवार ने गाना शुरू किया उस दौरान चंदैनी गोंदा का खूब परचम था कई देवार कलाकार काम करते थे। रेखा देवार भी अन्य देवार कलाकारों की भान्ति छत्तीसगढ़ी लोकगीत गाती थी। दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान बड़े कला मर्मज्ञ ने उनको कहां जी आप तो देवार समुदाय की है तो फिर अपने समुदाय की गातों और गाथाओं को क्यों नही गाती। रेखा देवार वहां से आने के बाद नई राह पकड़ी और देवार लोकगीत गाथा किस्सा कहानी आदि को डेरा-डेरा घुमकर संकलित करने लगी। इस बड़े काम में उनके साथ गुरू सोनउराम निर्मलकर विजय गुरूजी हमेशा साथ रहते थे। आज रेखा देवार इस बात को बड़े गर्व से कहती है कि मै जो कुछ भी हूं सोनउ गुरूजी और विजय गुरूजी के वजह से हूं। देवार कलाकारों को योगदान- छत्तीसगढ़ की लोककला को जनमानस तक पहुंचाने में देवार कलाकरों के अभुपूर्व योगदान रहा है। देवार परिवार ने कई बेहतरीन कलाकार इस प्रदेश को दिया है जिन्होने देश दुनिया में अपनी कला का लोहा मनवाया। वैसे तो देवारों विषय में कहा गया है कि इनके पूर्वज राजाओं के दरबार में मनोरंजन करने के लिये नाच-गाना किया करते थे। राजा रजवाड़ों का पतन होने के बाद ये लोग मांदर और चिकारा लेकर घुम-घुम कर गाना बजाना करने लगे। वर्तमान में श्रीमती रेखाबाई देवार एक ऐसी नामचिन कलाकार है जिनके गीत और नृत्य का पूरा देश दिवाना है। उनके गीत और संगीत पर कई रिसर्च भी हो रहे हैं ऐसे ख्यातिनाम कलाकार का मंचीय प्रस्तुति देखना और दिखाना सौभाग्य की बात है।