छत्तीसगढ़ में दिवाली के अवसर पर मनाया जाने वाला गौरी-गौरा त्योहार वहाँ की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को दर्शाता है। यह त्योहार छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है, और इसकी जड़ें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा में हैं। इस पर्व में शिव (गौरा) और पार्वती (गौरी) की विवाह की प्रतीकात्मक कहानी को जीवंत किया जाता है, जो प्रेम, समर्पण और भक्ति का संदेश देती है।
गौरी-गौरा पूजा का महत्त्व
गौरी-गौरा पूजा का मुख्य उद्देश्य परिवार में सुख-समृद्धि, खुशहाली, और एकता की कामना करना है। यह पर्व विशेष रूप से विवाहित महिलाएँ मनाती हैं, जो भगवान शिव और माता पार्वती से अपने परिवार की खुशहाली की प्रार्थना करती हैं। इसके साथ ही, इस पूजा में युवा लड़कियाँ भी हिस्सा लेती हैं और अच्छे पति की कामना करती हैं।
पूजा की विधि
गौरी-गौरा पर्व की तैयारी दिवाली के कुछ दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। गाँव की महिलाएँ मिट्टी से गौरी और गौरा की मूर्तियाँ बनाती हैं। फिर दिवाली के दिन इन्हें सजाकर एक स्थान पर स्थापित किया जाता है। पूजा के लिए गीत, व्रत, और पारंपरिक नृत्य का आयोजन होता है।
पूजा के दौरान महिलाएँ पारंपरिक छत्तीसगढ़ी गीत गाती हैं, जो विशेष रूप से गौरी-गौरा के सम्मान में रचे गए हैं। ये गीत शिव और पार्वती के विवाह के विभिन्न प्रसंगों का वर्णन करते हैं। इस दौरान महिलाएँ ‘सुआ नृत्य’ भी करती हैं, जिसमें उनके भाव और भक्ति की सुंदर झलक मिलती है।
गौरी-गौरा पूजा के रीति-रिवाज
गौरी-गौरा पूजा में कई विशेष रीति-रिवाज होते हैं, जैसे:
- मूर्ति स्थापना और सजावट: गौरी-गौरा की मूर्तियों को सजाने के लिए फूल, पत्तियाँ, और विभिन्न सजावटी वस्त्रों का उपयोग किया जाता है।
- गीत और नृत्य: महिलाएँ समूह में मिलकर गौरी-गौरा के गीत गाती हैं और एकत्रित होकर नृत्य करती हैं।
- भेंट और प्रसाद: पूजा के बाद सभी भक्तों को प्रसाद बाँटा जाता है। इसके अलावा, महिलाएँ एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देती हैं और सौभाग्य की कामना करती हैं।
समर्पण और परंपरा का प्रतीक
गौरी-गौरा पर्व छत्तीसगढ़ की संस्कृति में महिलाओं की श्रद्धा और उनके समर्पण को दर्शाता है। यह पर्व इस बात का प्रतीक है कि कैसे हमारे समाज में पारंपरिक मान्यताएँ और धार्मिक आस्थाएँ हमारी सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखती हैं।
आधुनिक समय में गौरी-गौरा पर्व का महत्त्व
आज भी छत्तीसगढ़ के गाँवों में गौरी-गौरा पूजा परम्परागत रूप में मनाई जाती है। इस पर्व का महत्व ग्रामीण समाज में उतना ही है जितना पहले था। हालाँकि, शहरीकरण और आधुनिकता के प्रभाव से इस त्योहार में थोड़े बदलाव आ सकते हैं, फिर भी इसकी जड़ें गहरी हैं और छत्तीसगढ़ की संस्कृति में इसका विशेष स्थान है।
गौरी-गौरा पर्व केवल पूजा का एक अवसर नहीं है, बल्कि यह परिवार और समाज को जोड़ने वाला एक अनूठा त्योहार है, जो समाज में प्रेम, सौहार्द्र, और समर्पण का संदेश देता है।