छत्तीसगढ़ में जंवारा विसर्जन: आस्था और परंपरा का संगम
छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक परंपराओं में जंवारा विसर्जन का विशेष महत्व है। नवरात्रि के पावन अवसर पर देवी दुर्गा की पूजा के साथ-साथ जंवारा उगाने और फिर विसर्जन की प्रथा भी निभाई जाती है। जंवारा, जो कि गेहूं और जौ के अंकुरित पौधे होते हैं, को नवरात्रि के पहले दिन मिट्टी के पात्र में बोया जाता है और दुर्गा माँ की आराधना के साथ इसका पालन किया जाता है। नवरात्रि के अंतिम दिन इन्हें देवी की विदाई के प्रतीक रूप में विसर्जित किया जाता है, जो स्थानीय समाज में प्रेम, भक्ति, और उल्लास की भावना को समर्पित करता है।
छत्तीसगढ़ में जंवारा स्थापना गीत एवं विस्तृत वीडियो
देवी बिदाई के जस गीत
जंवारा विसर्जन के साथ जस गीत और देवी बिदाई के जस गीत गाए जाते हैं। जस गीत छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति का एक अहम हिस्सा हैं, जो देवी दुर्गा की महिमा का बखान करते हैं और इस दौरान भक्तों की आस्था और भक्ति को प्रकट करते हैं। इन गीतों में देवी माँ की शक्ति, करुणा और उनके आशीर्वाद का गुणगान किया जाता है। विसर्जन के समय जब देवी को विदाई दी जाती है, तो जस गीतों की गूँज से वातावरण भक्तिमय हो उठता है। ये गीत माँ की विदाई के समय एक भावनात्मक संबंध को प्रदर्शित करते हैं, जिसमें उनके आशीर्वाद की कामना और उनके अगले आगमन की प्रतीक्षा शामिल होती है।
Dukalu Yadav Janwara Visarjan Geet Video
जंवारा गीत भी इस अवसर का एक प्रमुख हिस्सा होते हैं। ये गीत जंवारा विसर्जन की प्रक्रिया को और भी खास बना देते हैं। भक्तगण मिलकर देवी माँ की आराधना करते हुए जंवारा गीत गाते हैं, जो पूरे गाँव में भक्तिमय माहौल बना देते हैं। ये गीत आस्था और श्रद्धा का प्रतीक होते हैं और ग्रामीण जीवन में एकता और सामाजिक समरसता की भावना को बढ़ावा देते हैं।
छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में जंवारा विसर्जन और जस गीत की यह परंपरा अत्यंत प्रचलित है और इसे सभी जाति, धर्म के लोग मिलकर मनाते हैं।