मंगनी मा माँगे मया नई मिले रे | Mangni Ma Mange Maya Old CG Song Full Lyrics

छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के पर्याय बन चुके लक्ष्मण मस्तुरिहा एक ऐसे जनकवि और गीतकार थे, जिनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ की माटी की महक और यहां के जन-जन का दर्द समाहित है। वे एक सुमधुर गायक, संगीतकार और साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने अपने गीतों से छत्तीसगढ़ी संस्कृति को एक नई पहचान दी।

Mangni Ma Mange Maya Old CG Song Full Lyrics

मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा

फंदा रे फंदा मया के
हा…आ हा…आ हा…आ
मया के फंदा, मया के फंदा
दिखे मा लोभ लाये पाये मा फंदा रे मंगनी मा

मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा

नजर मिला के खेलो रे
हा…आ हा…आ हा…आ
खेलो रे पासा, खेलो रे पासा
चोला मगन ता छुपाये के आशा मंगनी मा

मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा

Kavita Vasnik Jas Geet

पाये मा माटी गवांये मा
हा…आ हा…आ हा…आ
गवांये मा हीरा, गवांये मा हीरा
छिन भर के मया अउ छिन भर के पीरा रे मंगनी मा

मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा

मया के आंचल काजर के
हा…आ हा…आ हा…आ
काजर के कोठी, काजर के कोठी
कतको लुकाबे तभो दाग होही रे मंगनी मा

मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा

मया बर पिया अउ पिया बर
हा…आ हा…आ हा…आ
पिया बर मया, पिया बर मया
नई लागे कोनों ला कोनों बर दया रे मंगनी मा

मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा
मंगनी मा माँगे, मया नई मिले रे मंगनी मा

Mangni Ma Mange Maya Old CG Song Full Lyrics

मंगनी मा माँगे मया नई मिले रे

जीवन परिचय स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तुरिहा जी का-

मस्तुरिहा का जन्म 7 जून 1949 को बिलासपुर जिले के मस्तूरी गांव में हुआ था। केवल 22 साल की उम्र में वे दुर्ग के दाऊ रामचंद्र देशमुख के प्रसिद्ध सांस्कृतिक मंच “चंदैनी गोंदा” के प्रमुख गीतकार बन गए। इस मंच के लिए उन्होंने लगभग डेढ़ सौ गीतों की रचना की। उनका सबसे प्रसिद्ध गीत “मोर संग चलव रे” आज भी लोगों की जुबान पर है और छत्तीसगढ़ी लोक संगीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

उनके गीतों में छत्तीसगढ़ के सीधे-सादे और मेहनती लोगों के दिल की बात होती थी। उन्होंने ददरिया, करमा, सुआ, देवार, और बिहाव जैसे अनेक पारंपरिक लोक धुनों पर आधारित गीतों की रचना की। उनके कई गीत उनके जीवनकाल में ही लोक-गीत का दर्जा पा चुके थे। मस्तुरिहा के गीतों में सामाजिक चेतना और शोषण के विरुद्ध आवाज भी बुलंद होती थी।

लक्ष्मण मस्तुरिहा कबीरपंथी विचारधारा के अनुयायी थे और उनका जीवन सादगी से भरा था। 3 नवंबर 2018 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।

छत्तीसगढ़ी लोक संगीत में उनके अतुलनीय योगदान को सम्मानित करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने उनकी स्मृति में लोकगीत के क्षेत्र में “लक्ष्मण मस्तुरिया पुरस्कार” की स्थापना की है। इसके अलावा, उन्हें मार्च 2008 में भोपाल में मध्य प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा ‘आंचलिक रचनाकार सम्मान’ से भी विभूषित किया गया था। लक्ष्मण मस्तुरिहा का नाम और उनके गीत छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत में सदैव अमर रहेंगे।

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